गुरु अर्जन देव जी सिक्खों के पांचवे गुरु थे। वे सर्व धर्म समभाव का उपदेश देते थे। मानवीय आदर्शों पर कायम रहने के लिए कायम रहने का उपदेश दे...
गुरु अर्जन देव जी सिक्खों के पांचवे गुरु थे। वे सर्व धर्म समभाव का उपदेश देते थे। मानवीय आदर्शों पर कायम रहने के लिए कायम रहने का उपदेश देते थे। श्री गुरु अर्जन देव जी एक महान आत्मा थे।
उनके भीतर धार्मिक और मानवीय मूल्यों, निर्मल प्रवृत्ति, सहृदयता, कर्तव्यनिष्ठा जैसे गुणों को देखकर उनके पिताजी श्री गुरु रामदास जी ने 1581 में श्री गुरु अर्जुन देव जी को पांचवा सिख गुरु के रूप में “गुरु गद्दी” पर सुशोभित किया था।
जीवन परिचय
उनका जन्म 15 अप्रैल सन 1563 को अमृतसर में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री गुरु रामदास जी और माता का नाम बीबी भानी जी था। “दोहिता बाणी का बोहिथा” उनका प्रसिद्ध वरदान वचन है
विवाह
जब गुरु अर्जन देव जी की उम्र 16 वर्ष की हो गई तो 1936 ई० (23 आषाढ़ संवत) को उनका विवाह श्री कृष्ण चंद जी की पुत्री गंगा जी से हुआ। उनका विवाह जिस स्थान पर हुआ था वहां पर आज भी एक सुंदर गुरुद्वारा बना हुआ है।
गुरु अर्जन देव जी को गुरु गद्दी की प्राप्ति
गुरु रामदास जी ने अपने पुत्र गुरु अर्जुन देव जी को लाहौर भेजा था। वहां से गुरु अर्जन देव जी ने अपने पिता को 3 चिट्ठियां लिखी थी, जिसमें उन्होंने पिता से मिलने की इच्छा व्यक्त की थी। गुरु रामदास जी यह चिट्ठी पाकर बहुत खुश हुए। उन्होंने हर प्रकार से गुरु अर्जन देव जी को गद्दी के योग्य समझा।
उन्होंने अपने भाई गुरदास और बुड्डा जी से भी इसके लिए परामर्श लिया। गुरु रामदास जी ने सिख संगत के सामने गुरु अर्जन देव जी को पांच पैसे दिए। गुरु अर्जन देव जी ने पैसे और नारियल लेकर तीन परिक्रमा करके गुरु नानक जी की गद्दी को माथा टेक दिया। इस तरह गुरु अर्जन देव जी को गुरु गद्दी मिली। उन्होंने समस्त सिख समुदाय के साथ साथ मानवता की भलाई करने का प्रण लिया था।
गुरु अर्जन देव जी की शहादत का कारण
गुरु अर्जन देव जी की शहादत के लिए तीन लोग प्रमुख रूप से जिम्मेदार थे- गुरुजी का बड़ा भाई पृथ्वी चंद, चंदू और अकबर का बेटा जहांगीर। चंदू अपनी बेटी का विवाह गुरु अर्जन देव जी के बेटे से करना चाहता था पर इसके लिए गुरुजी ने सहमति नहीं दी। इसलिए वह गुरु जी से नफरत करता था।
गुरु अर्जन देव जी का बड़ा भाई पृथ्वी चंद भी उनसे ईर्ष्या करता था क्योंकि उसे गुरु गद्दी नहीं प्राप्त हुई थी। कुछ दिनों बाद अकबर की मृत्यु हो गई और उसका बेटा जहांगीर दिल्ली का शासक बन गया। चंदू और गुरु जी का बड़ा भाई पृथ्वी चंद उसके कान भरने लगे। जहांगीर एक कट्टर मुस्लिम शासक था। वह सिर्फ इस्लाम धर्म का सम्मान करता था। दूसरे धर्मों का वह सम्मान नहीं करता था।
गुरु अर्जन देव जी द्वारा किए जा रहे सामाजिक और धार्मिक कार्यों को वह पसंद नहीं करता था। ऐसा माना जाता है कि जहांगीर इस बात से नाराज था कि गुरु अर्जन देव जी ने उसके बागी पुत्र “शहजादा खुसरो” को शरण दी थी। इसलिए जहांगीर गुरु अर्जन देव जी से बदला लेना चाहता था। जहांगीर ने गुरु अर्जन देव जी से कहा कि तुमने मेरे बागी पुत्र को शरण दी है।
इसलिए तुम्हें 2 लाख रूपये का जुर्माना देना पड़ेगा वरना तुम्हें शाही दंड दिया जाएगा। जब इस बात के लिए गुरु अर्जन देव जी तैयार नहीं हुए तो चंदू ने अपनी पुत्री का विवाह उनके बेटे से करने का प्रस्ताव रखा और कहा कि सिखों के ग्रंथ में मोहम्मद साहेब की स्तुति लिखनी होगी। इस तरह 2 लाख रूपये का जुर्माना माफ हो जाएगा। दोनों ही बातों को गुरु अर्जन देव जी ने मना कर दिया।
गुरु अर्जन देव जी द्वारा शरीर त्यागना
जब गुरु अर्जन देव जी ने चंदू की दोनों बातें मानने से इनकार कर दिया तो उन्हें एक गर्म देग (तवे) में उबलते हुए पानी में बिठा दिया गया। जब यह बात अन्य सिखों को पता चली तो मुगलों और सिखों में संघर्ष शुरू हो गया। जो सिख उन्हें बचाने के लिए आगे आ रहे थे जहांगीर के सिपाही उनको मार देते थे।
गुरु अर्जन देव जी ने अपने साथियों को शांत रहने को कहा और इसे परमेश्वर का आदेश समझा। बार-बार चंदू उन्हें अपनी बात मानने को कह रहा था जिसे गुरूजी मना कर देते थे। चंदू ने गुरु अर्जन देव जी के ऊपर गर्म रेत भी डलवाई थी।
गुरु जी ने शांत होकर “तेरा भाना मीठा लागे, हरि नाम पदार्थ नानक मांगे” वचन बोलते रहे। उनके सभी समर्थक त्राहि-त्राहि कर रहे थे, पर चाह कर भी वह गुरु अर्जन देव जी को बचा न सके। गुरुजी के शरीर पर सब तरफ छाले पड़ गए। तीसरे दिन चंदू ने फिर से गुरुजी से उसकी शर्तें मानने को कहा, जिसे उन्होंने फिर से मना कर दिया। इस बार उसने गुरु जी को गर्म लोहे के ऊपर बिठा दिया। लोग हाहाकार कर रहे थे।
गुरु अर्जन देव जी ने अपना अंतिम समय जानकर चंदू से रावी नदी में स्नान करने की बात कही। उसने इसकी आज्ञा दे दी। गुरुजी रावी नदी के किनारे बैठ गए और “जपुजी सहिब” का पाठ करने लगे। उन्होंने श्री हरि गोविंद और अन्य साथियों को कहा कि मेरी मृत्यु के बाद कोई शोक न करें। करतार का हुकुम मानना। मेरे शरीर को जल में प्रवाह करना उसका संस्कार नहीं करना।
गुरु अर्जन देव जी का निधन
इसके पश्चात रावी नदी में प्रवेश कर गुरु अर्जन देव जी ने अपना शरीर 30 मई 1616 ई० (ज्येष्ठ सुदी चौथ संवत 1553 विक्रमी) को त्याग दिया। अमृतसर में उस दिन चारों तरफ शोक की लहर दौड़ गई।
गुरु ग्रंथ साहिब जी में दर्ज बानी (उपदेश)
गुरु अर्जन देव जी की बानी (उपदेश) गुरु ग्रंथ साहिब में 30 रागों में संकलित है। गणना की दृष्टि से सबसे अधिक बानी (उपदेश) पांचवे गुरु श्री अर्जन देव जी की है। गुरु ग्रंथ साहिब जी में कुल 31 राग हैं जिसमें जय जयवंती राग को छोड़कर बाकी सभी रागों में गुरु अर्जन देव जी की गुरबाणी (उपदेश) दर्ज हैं। यह 2218 श्लोक के रूप संकलित है।
उनकी मुख्या रचनाएँ –
- गौउडी सुखमनी
- बारामाह माझ
- बावन अखरी
- बिरहड़े
- गुनवन्ती
- अंजुली
- पहिरे
- दिन- रैन राग
- बद्ध बानिया
- सलोक वारा
- गाथा
- फुन्हे
- चोअ बोले
- संस्कृति स्लोक
- मुंदावनी महला 5 आदि राग
बादशाह अकबर और गुरु अर्जन देव जी
गुरु अर्जन देव जी ने ग्रंथ साहिब (सिक्खों का पवित्र ग्रंथ) का संपादन किया था। गुरु अर्जन देव जी से ईर्ष्या करने वाले कुछ लोगों ने बादशाह अकबर से शिकायत की कि ग्रंथ साहिब में इस्लाम धर्म के खिलाफ लिखा गया है। अकबर ने इस बात की जांच कराई और उन्हें पता चला कि यह शिकायत झूठी है।
तब उन्हें गुरु अर्जन देव जी की महानता के बारे में पता चला। उन्होंने उनके भाई गुरदास जी और बाबा बुड्ढा जी को 51 मोहरे भेंट की और खेद व्यक्त किया। बादशाह अकबर ने गुरु अर्जन देव जी को लाहौर में किए गए सामाजिक सेवा कार्यों के लिए धन्यवाद किया।
गुरु अर्जन देव जी के बारे में विशेष तथ्य
- गुरु अर्जन देव जी ने अमृतसर नगर का निर्माण कार्य आगे बढ़ाया था।
- उन्होंने अमृत सरोवर का निर्माण करवाया और उसमें हरमिंदर साहिब की स्थापना करवाई।
- गुरु अर्जन देव जी के समय में तरनतारन नगर बसाया गया था।
- बादशाह अकबर भी गुरु अर्जन देव जी का सम्मान करता था।
- गुरु अर्जन देव जी ने सभी जातियों के उद्धार के लिए सामाजिक कार्य किए थे।
- जहांगीर द्वारा गुरु अर्जन देव जी को तरह-तरह से प्रताड़ित किया गया था जो उनकी शहादत का कारण बना।