सूर्य जल चिकित्सा में सूर्य की किरणों से जल तैयार किया जाता है। सूरज की किरणों में पाए जाने वाले अलग रंग का शरीर पर अलग प्रभाव होता है। आइ...
सूर्य जल चिकित्सा में सूर्य की किरणों से जल तैयार किया जाता है। सूरज की किरणों में पाए जाने वाले अलग रंग का शरीर पर अलग प्रभाव होता है। आइये जाने इसका लाभ उठाकर कैसे स्वास्थ्य सुधार सकते हैं।
धूप सफ़ेद दिखाई देती है , लेकिन इसमें सात रंग होते हैं -बैंगनी , नीला , आसमानी , हरा , पीला, नारंगी और लाल। प्रत्येक रंग में एक विशेष गुण होता है जो पृथ्वी की वस्तुओं को प्रभावित करने की क्षमता रखता है।
इन रंगो का लाभ लेने के लिए यदि पानी या अन्य किसी चीज को खास तरीके से सूरज की किरणों से तप्त किया जाये तो उसमे रोग निवारक और स्वास्थ्यवर्धक गुण उत्पन्न हो जाते हैं।
इसका लाभ मानव शरीर की बीमारी को ठीक करने या स्वस्थ रहने के लिए किया जा सकता है। यह सूर्य किरण चिकित्सा पद्धति कहलाती है। विशेष रंग की काँच की बोतल में जल भरकर धूप में रखने से तैयार जल के माध्यम से की गई चिकित्सा को सूर्य जल चिकित्सा कहते हैं ।
इस प्रकार सूर्य से तप्त जल को पीने , गरारे करने , आँख धोने , घाव धोने , या मालिश करने में काम लेकर इसके औषधीय गुणों का लाभ लिया जा सकता है। आइये जानें सूर्य जल कैसे बनाते हैं और इसका लाभ कैसे लिया जा सकता है।
सूर्य जल तैयार करने का तरीका
साफ काँच की बोतल में शुद्ध पानी भरकर कॉर्क का ढक्कन लगा दें। ऊपर दो अंगुल जितनी जगह छोड़ दें। प्लास्टिक की बोतल नहीं लें। काँच की बोतल जरुरत के अनुसार लाल , पीले , नीले या हरे रंग की काम में लें। पानी भरकर बोतल को धूप में लकड़ी के पाटिये पर रख दें ।
यदि अलग अलग रंग की बोतल में पानी भरकर धूप में रख रहे हैं तो एक बोतल की छाया दूसरी बोतल पर नहीं गिरनी चाहिये।
8 घंटे सूरज की किरणें बोतल पर गिरने से इसमें रखे पानी में रोग निवारक औषधीय गुण उत्पन्न हो जाते हैं। पानी तैयार होने पर बोतल के अंदर खाली भाग में भाप की बूँदें दिखने लगती हैं।
शाम को धूप समाप्त होने से पहले यह बोतल अंदर लाकर लकड़ी के पाटे पर रख दें और अपने आप ठंडी होने दें। यह पानी अब दवा के रूप में लिया जा सकता है। इसे तीन दिन तक काम में ले सकते हैं। फिर नया पानी बना लेना चाहिए।
सूर्य जल चिकित्सा
सूर्य जल की कितनी मात्रा लेनी चाहिए
सूर्य से तप्त जल दवा होता है , अतः इसकी मात्रा आवश्यकता के अनुसार ही लेनी चाहिए। अधिक मात्रा में इस पानी को लेने से दुष्प्रभाव हो सकता है।
पुराना रोग हो तो पाँच पाँच चम्मच ( 25 ml ) दिन में तीन बार लिया जाता है। साधारण अवस्था में दो-तीन चम्मच दिन में तीन चार बार ले सकते हैं। रोग के तीव्र लक्षण हों तो दो दो चम्मच दो दो घंटे से ले सकते हैं।
बच्चों को एक एक चम्मच दिन में तीन बार देना चाहिए। एक से तीन साल तक के बच्चे को आधा चम्मच तीन बार दे सकते हैं। एक साल से छोटे बच्चे को विशेषज्ञ चिकित्सक की सलाह से ही यह पानी देना चाहिए।
लाल या नारंगी रंग से तप्त सूर्य जल के फायदे
पेट में गैस , एसिडिटी , भूख नहीं लगना , उल्टी , जी घबराना , लीवर में सूजन , जोड़ों का दर्द , मांपेशी में ऐंठन , सर्दी , जुकाम , खांसी , दमा , खून की कमी , माहवारी कम या दिक्कत से होना , पेशाब अधिक आना , बच्चों का बिस्तर में पेशाब करना , ब्लड प्रेशर लो रहना , पीठ दर्द , एड़ी फटना , आदि रोग में लाभदायक होता है।
आमाशय , लिवर और आँतों पर लाल रंग का अच्छा प्रभाव पड़ता है।
सावधानी :
लाल रंग वाला पानी नाश्ता या भोजन लेने के आधा घंटे बाद लेना चाहिए।
यह पानी उष्ण प्रकृति का होता है अतः गर्मी के मौसम में इसका उपयोग सावधानी से करना चाहिए।
शरीर की प्रकृति पित्त प्रधान हो या गर्मी ज्यादा लगती हो तो इस पानी उपयोग ध्यान पूर्वक करना चाहिए।
लाल रंग के पानी से नुकसान होता दिखाई दे तो हरे रंग का पानी पीने से ठीक हो जाता है।
हरे रंग से तप्त सूर्य जल के फायदे
यह पानी मानसिक उपचार में लाभदायक होता है। इसे पीने से मन प्रफुल्लित रहता है। क्रोध , लोभ , मोह ईर्ष्या जैसी भावना हावी नहीं हो पाती। इसके अलावा यह शरीर से विषैले तत्वों को मल , मूत्र आदि के माध्यम से बाहर निकालने में सहायक होता है।
यह टाइफॉयड , चेचक , सूखी खांसी , फोड़े फुंसी , मुँहासे , , एक्जिमा , दाद आदि में लाभदायक होता है। शरीर में किसी कारण से पीप पड़ जाये तो इससे ठीक हो सकती है। गुर्दे की पथरी , हाई ब्लड प्रेशर , मिर्गी , मरोड़ के साथ दस्त , पेचिश , मुँह के छाले आदि में लाभदायक होता है।
यह किडनी , और त्वचा की कार्य प्रणाली को सुधारता है। खून साफ करता है। त्वचा रोग मिटाता है। यह पानी कब्ज दूर करने में विशेष फायदा करता है। पुरानी कब्ज भी इससे ठीक हो सकती है।
आँखों के लिए हरा रंग विशेष लाभदायक होता है। इस पानी से आँख धोने और आँख में डालने से आँख दुखना और आई फ्लू ठीक होता है।
पेशाब की जलन , UTI यूरिन इन्फेक्शन होने पर यह पानी पीने से फायदा होता है।
हरे रंग का यह पानी खाली पेट लेना चाहिए। अन्यथा खाना खाने से एक घंटे पहले ले लेना चाहिए।
पीले रंग से तप्त सूर्य जल के फायदे
पीले रंग से तप्त पानी दिमाग की ताकत बढ़ाता है। यह ज्ञान , बुद्धि और विवेक को बढ़ाने वाला माना जाता है। इसके अलावा पेट में कीड़े , पाचन की समस्या , पेट दर्द , पेट फूलना , आदि रोगों में लाभदायक होता है।
अधिक समय बैठकर काम करने वाले लोगों को अक्सर पाचन की समस्या होती है। इस स्थिति में इस पानी से बहुत लाभ होता है।
इसमें लाल रंग के पानी वाले गुण होते हैं। दस साल से कम उम्र के बच्चों को लाल के बजाय पीले रंग वाला पानी देना चाहिए।
नीले रंग से तप्त सूर्य जल के फायदे
नील रंग वाला पानी शरीर की जलन को शांत करता है। तन को ठंडक देता है। हाथ पैरों में जलन , प्यास अधिक लगना, लू लग जाना , तेज बुखार , हैजा , दस्त , आँव युक्त दस्त , हृदय की धड़कन तेज होना या घबराहट होना मिटते हैं।
गर्मी के कारण सिर में दर्द , नींद नहीं आना , पेशाब रुक रुक कर आना , मासिक में अधिक रक्तस्राव , फ़ूड पोइज़न , अलाइयाँ, मुँहासे , जहरीले कीड़े का काटना , आग से जलना आदि में शीघ्र लाभ होता है। मुँह के छाले , मसूड़ों में खून आना , गले की खराश आदि में फायदा मिलता है।
सावधानी :
लकवा , जोड़ों का दर्द , सर्दी जुकाम , कफ युक्त खांसी या अधिक कब्ज हो तो नील रंग का पानी नहीं लेना चाहिए। नीले रंग और लाल रंग का पानी साथ में प्रयोग में नहीं लाना चाहिए।
सफ़ेद या रंगहीन सूर्य जल के फायदे
बच्चों के लिए यह विशेष पौष्टिक और गुणकारी होता है। बच्चों की हड्डियां मजबूत बनाता है। दाँत निकलते समय परेशानी को कम करता है। इस पानी में कैल्शियम के गुण आ जाते हैं। इसे लेने से हड्डी जल्दी जुड़ जाती है।
महिलाओं में मेनोपोज़ होने के बाद हड्डी कमजोर होने की समस्या आती है। इससे कमर , घुटने दुखने लगते है और जरा सी चोट लगने पर हड्डी टूटने की संभावना बनी रहती है। 40 साल की उम्र के बाद यह पानी नियमित पीने से हड्डी की कमजोरी से और मेनोपॉज़ की परेशानी से बचा जा सकता है।
इस पानी को बालों को धोने के लिए उपयोग में लाने से बाल गिरना बंद होते हैं और बाल रेशमी चमकदार होते हैं।
इसे पीने से भूख शांत होती है और वजन कम करने में मदद मिलती है। यह पानी सभी उम्र के लोगों के लिए एक अच्छे टॉनिक की तरह काम कर सकता है।